Parenting Tips in Hindi अच्छे अभिभावक के गुण How to become a ideal parent बच्चों की देखभाल कैसे करें
आज मैं एक ऐसे विषय की चर्चा करना चाहता हूँ जो ज्यादातर माता-पिता की जिंदगी में कभी न कभी एक बड़ा सवाल बनकर जरूर खड़ा हो जाता है। हमारे देश में Parenting कभी समस्या नहीं रही है बल्कि यहाँ केवल परिवार ही नहीं बल्कि समाज भी एक बच्चे की परवरिश में उतना ही योगदान देता है जितना की बच्चे के माता पिता या उसके अभिभावक।
समय के साथ सामाजिक तानाबाना बदल रहा है, अब ज्यादातर लोग जीवनयापन की जरूरतों को पूरा करने के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। आप अगर ग्रामीण और शहरी परिवेश की तुलना करेगें तो पाएंगे की बच्चों द्वारा सीखने के ज्यादा मौके ऐसे स्थानों पर अधिक होते हैं जहाँ उन्हें स्वंतंत्रतापूर्ण माहौल दिए जाएं, निश्चित ही ये शहरों में संभव नहीं है।
मैं इस बात से इंकार नहीं कर रहा की गाँवों की अपेक्षा शहरों में ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध होते हैं लेकिन यहाँ ज्यादातर बच्चे स्कूल और घर की चार दीवारी के बीच ही अपना बचपन बिता देते हैं।
पेरेंटिंग क्या है | Parenting Tips in Hindi
आमतौर पर आधुनिक माता-पिता ये सोचते हैं कि पेरेंटिंग एक बेहद ही कठिन काम है इसमें काफी प्रयास एवं धैर्य कि आवश्कयता होती है और ये तब ज्यादा कठिन लगने लगता है अगर दोनों कामकाजी हों। दुनिया का हर माँ-बाप अपने बच्चे को एक अच्छा एवं सफल इंसान बनाना चाहता है और इसके लिए वो अपने बच्चे कि परवरिश बेहतरीन से बेहतरीन करना चाहते हैं। लेकिन क्या ये इतना आसान है? शायद नहीं क्योंकि मैं ये अक्सर देखता हूँ कि पेरेंट्स अपने बच्चे के ऊपर छोटी-छोटी बात पर भी खीज उठते हैं।
जिस प्रकार कोई कलाकार एक पत्थर या लकड़ी के टुकड़े को धीरे-धीरे एक खूबसूरत मूर्ति में बदल देता है उसी प्रकार प्रत्येक माता-पिता द्वारा पेरेंटिंग को एक कला मानकर अपने बच्चों की देखभाल करनी चाहिए क्योंकि उनके द्वारा किया गया हर व्यवहार उस बच्चे के भविष्य की नीव बनेगा।
इस प्रकार से आप कह सकते है कि बच्चे कि परवरिश करना एक बेहद ही खूबसूरत कला है जिसके माध्यम से आप अपने नौनिहालों को स्वस्थ्य, बुद्धिमान एवं आनंद से भरपूर व्यक्तित्व बनने का रास्ता तैयार करते हैं।
पेरेंटिंग में सबसे ज्यादा जरुरी क्या है?
बच्चों में उसके शारीरिक गुणों का विकास कई तत्वों पर निर्भर करता है जैसे उसका खान-पान, उसके आस-पास का वातावरण एवं उसकी शारीरिक बनावट। जिस प्रकार से इनके शारीरिक गुणों का विकास जरुरी है उसी प्रकार से बच्चों की मानसिक और भावनात्मक स्थिति का भी निरंतर विकास होते रहना चाहिए।
निश्चित रूप से बच्चों को उनके किसी गलत व्यवहार के लिए डाँटना या उन्हें गलती का अहसास कराना जरुरी होता है लेकिन ऐसा करने में कभी भी कठोरता का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका सीधा असर उसके मानसिक स्वास्थ्य पर होता है। बच्चों को आप जितने प्यार एवं सम्मान के साथ निर्देशित करेगें उतने ही सकारात्मक तरीके से उनका मानसिक एवं भावनात्मक विकास होगा।
पेरेंटिंग के महत्वपूर्ण पहलू क्या है?
जैसा की हमने जाना की पेरेंटिंग एक कला है और अगर पूरी दुनियाँ की बात की जाये तो इस कला में जापान के माता-पिता को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। जापान ही एक ऐसा देश है जिसको दुनियाँभर के लोग पेरेंटिंग के लिए प्रेरणा का श्रोत मानते हैं, ये आपको वहाँ के बच्चों में सहज ही दिखाई दे जायेगा।
जापानी बच्चों के बारे में कहा जाता है की वो अद्भुत होते हैं, हर उम्र के बच्चे में एक बहुत ही निश्चित व्यवहार होता है जो उन्हें पूरी दुनियाँ के बच्चों से अलग बनता है। यहाँ के बच्चे बहुत ही सामाजिक, विनम्र एवं मिलनसार होते हैं। ऐसा माना जाता है की आपको जापान में कोई रोता हुआ बच्चा नहीं मिलेगा।
तो ऐसा क्या है जो जापान के बच्चों को पूरी दुनियाँ के बच्चों से अलग बनता है, जी हाँ इसका रहस्य जापानी पेरेंटिंग के तरीके में छुपा हुआ है और ये तरीका पूरी दुनियाँ में कहीं दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता है।
वैसे तो हम सभी भारतीयों को अपनी परंपरा एवं पारिवारिक परिवेश में मिलने वाली शिक्षा पर गर्व होना चाहिए लेकिन फिर भी हमें जापानी पेरेंट्स से अपने बच्चों के परवरिश हेतु बहुत कुछ सीखने की जरुरत है।
पेरेंटिंग में माता-पिता की भूमिका
जापानी बच्चों के पालन-पोषण में वहाँ के माता-पिता बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, आमतौर पर वो अपने बच्चे को जन्म देने की योजना तभी बनाते हैं जब ऐसा करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय एवं संसाधन मौजूद हो। जापानी बच्चे एवं उनकी माँ के बीच बहुत ही अनोखा रिश्ता होता है क्योंकि यहाँ की माताएं अपने छोटे बच्चे के पालन-पोषण पर बहुत अधिक ध्यान देती है। अपने बच्चों की परवरिश के लिए जापानी माता-पिता अपनी नौकरी एवं अन्य जिम्मेदारियों से कुछ समय की लिए बिल्कुल अलग हो जाते हैं ताकि वो अपने बच्चे को अधिक से अधिक गुणवत्तापूर्ण समय दे सकें।
जापानी मायें बच्चे के जन्म के बाद ज्यादातर समय उन्हीं के साथ बिताती है और ऐसा कोई व्यवहार नहीं करती जिससे की उनके बच्चों पर कोई नकारात्मक असर पड़े, इसलिए ऐसा देखा गया है कि यहाँ के बच्चे बहुत ही सकारात्मक सोच के होते हैं और ये सकारात्मक दृष्टिकोण उनको पूरी जिंदगी किसी भी समस्या में उलझने पर उससे आसानी से निकलने में मदद करता है।
एक और महत्वपूर्ण बात ये है की यहाँ शुरुआती तीन वर्ष तक बच्चे को किसी भी प्रकार के किंडर गार्डन या क्रेच में नहीं भेजा जाता है ताकि बच्चा अधिक से अधिक समय अपनी माँ के साथ बिता सके।
पेरेंटिंग में अभिभावकों एवं सामाजिक परिस्थितिओं का असर
हम आमतौर पर भारतीय समाज में ये देखते हैं की यहाँ अमीर और गरीब के बीच एक बहुत ऊँची दीवार बनी हुई होती है लेकिन जापानी स्कूलों में ऐसे सामाजिक बंधनों के इतर हर तबके के बच्चों को एक ही प्रकार के स्कूल में शिक्षा देने का प्रावधान है उन्हें शुरू से ही समानता का बोध कराया जाता है तथा अमीर और गरीब बच्चे एक साथ सभी प्रकार के क्रियाकलाप में मिलजुल कर हिस्सा लेते हैं।
उनके बीच कभी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है। यही सामाजिक परिस्थिति हर बच्चे को समानता के साथ जरुरी मूल्यों को सीखने में मदद करता है जिससे यहाँ के हर बच्चे समाज में एक साथ रहने के अनुकूल बन जाते हैं, उनके बीच किसी प्रकार का दिखावा या आडम्बर की जरुरत नहीं रह जाती है।
अभिभावकों के मामले में अभी भी शायद हम ज्यादा बेहतर हैं क्योंकि भारतीय समाज पारिवारिक मूल्यों का सम्मान करने में विश्वाश रखता है लेकिन जिस प्रकार से आधुनिकता की दौड़ में ये धराशायी हुआ जा रहा है उससे आने वाला समय डरावना प्रतीत होता है।
समय रहते इसपर विचार किये जाने की जरुरत है ताकि भारतीय बच्चों को अपना बचपन दादा-दादी एवं नाना-नानी के साथ बिताने का मौका मिल सके, उनकी लोरी और कहानियों से उनकी कल्पना शक्ति का विकास हो न की उनका बचपन क्रेच के किसी कोने में बीत जाये।
पेरेंटिंग एक शानदार अवसर है
इतना तो तय है की पेरेंटिंग कोई समस्या नहीं है बल्कि ये एक ऐसा अवसर है जिससे हम अपनी कला एवं कल्पनाशक्ति के माध्यम से एक बेहतरीन मनुष्य का निर्माण कर सकते हैं और ऐसा मौका भगवान के बाद केवल इंसान को ही मिलता है। अगर आपको ऐसा मौका मिला है तो इस स्वर्णिम अवसर को हाथ से मत जाने दीजियेगा।
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